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hot इतनी गर्मी क्यों पढ़ रही है 2024

लोगों ने यह बात बहुत बार कही है, कि उन्हें लगता है कि गर्मी पिछले सालों की तुलना में अब ज्यादा है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण, और प्राकृतिक संसाधनों की उपयोग में बदलाव। यह सब कुछ मिलाकर गर्मियों के तापमान को बढ़ा सकता है, जिससे लोगों को गर्मी का अनुभव होता है।

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इस साल का अधिकतम तापमान कई इलाकों में दर्ज किया गया है, जैसे कि महाराष्ट्र के ब्रह्मपुरी में 46.4 डिग्री, उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 46 डिग्री, चंद्रपुर में 45.5 डिग्री, बांदा में 45.4 डिग्री, और वर्धा में 44.9 डिग्री सेल्सियस। वैसे, इस साल की औसत तापमान में भी 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की जा रही है।

जलवायु वेबसाइट एल डोराडो के जारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले शुक्रवार को मध्य भारत पृथ्वी के सबसे गर्म क्षेत्रों में से एक था। वेबसाइट के मुताबिक, मध्य भारत के कुछ शहरों को दुनिया के 15 सबसे गर्म शहरों में शामिल किया गया है। कुछ लोगों का मानना है कि इस बार की गर्मी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अधिक भयानक होगी।

भारतीय शहरों का रूप पिछले कुछ दशकों में काफी बदल गया है। यहां की हरियाली में दिनों-दिन कमी आ रही है, धीरे-धीरे पेड़ों को काटा जा रहा है। इमारतों की संख्या बढ़ रही है और घरों में एसी का इस्तेमाल भी बढ़ रहा है। सड़कों का विस्तार भी तेजी से हो रहा है। इन सभी कारणों से तापमान भी उसी रफ़्तार में बढ़ रहा है।

शहरों में जनसंख्या की बढ़ते हुए और वातावरणीय परिवर्तन के कारण हीट आइलैंड का असर बढ़ रहा है। हीट आइलैंड इसलिए खतरनाक होता है क्योंकि इससे उच्च तापमान, वायु प्रदूषण, और अधिकतम ऊर्जा खपत का सामना करना पड़ता है। इससे लोगों की स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और शहर की जीवन गुणवत्ता भी कम हो जाती है।

इस समस्या का समाधान करने के लिए शहरों में हरियाली को बढ़ावा देना, पेड़-पौधों को बढ़ावा देना, और संरक्षण के लिए शहरी जल संसाधनों का सदुपयोग करना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, स्थानीय निकायों को ऊर्जा दक्षिण निर्मिति, प्रदूषण नियंत्रण, और पर्यावरणीय संरक्षण के लिए उपायों का अध्ययन करना चाहिए। ऐसे उपायों से हम शहरों को हीट आइलैंड बनने से बचा सकते हैं।

डॉ. धोर्डे के विचार से स्पष्ट है कि शहरों में निर्माण के कारण हरियाली क्षेत्रों की कमी हो रही है और इसका परिणाम स्थानीय तापमान में वृद्धि हो रही है। यह एक प्रभावशील परिस्थिति है जो अधिकतर बड़े शहरों में देखा जा सकता है। यह विचार शहरी विकास की सामाजिक और पर्यावरणीय प्रतिक्रिया को समझने में मदद कर सकता है।

मानसी देसाई के द्वारा उठाए गए मुद्दे में एक नए परिपेक्ष्य का परिचय है। उनका विचार दिखाता है कि ग्लोबल वार्मिंग के अलावा शहरों के बढ़ते तापमान में जमीन के बदलते उपयोग का भी महत्वपूर्ण योगदान है। यह विचार परिस्थितियों के संदर्भ में और अधिक समझने के लिए महत्वपूर्ण है, जिससे कि उपाय और नीतियाँ सही दिशा में ली जा सकें।

यह तथ्य शहरी विकास और अधिकरण के प्रति संवेदनशीलता को उजागर करता है। नए शहरों की तेजी से बढ़ती इमारतें और सड़कें ऊष्मा को अधिक सोखती हैं, जिससे उनका तापमान बढ़ जाता है। इसे समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम शहरी निर्माण में ऊष्मा सोखने और उसे बढ़ाने के विभिन्न तकनीकों का अध्ययन करें, ताकि हम आगामी शहरों को अधिक संवेदनशील, स्वास्थ्यप्रद और सस्ते ऊष्मा विकल्पों के साथ निर्मित कर सकें।

डॉ. रंजन केलकर द्वारा उठाए गए आंकड़े और विचार स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि शहरों में बढ़ते तापमान को सिर्फ़ ग्लोबल वार्मिंग से ही जोड़ना सही नहीं है। उनका अनुसंधान प्रारंभिक 19वीं सदी की तापमान रिकॉर्डों को उठाता है, जो बताता है कि तापमान के बदलाव में ग्लोबल वार्मिंग के सिवाय भी कई तत्व शामिल हो सकते हैं। यह उन्हें मानव गतिविधियों, शहरीकरण, और परिवर्तनशील प्राकृतिक प्रक्रियाओं के संदर्भ में विचार करने के लिए प्रेरित करता है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि हवा के रुख कैसे शहरों के तापमान को प्रभावित कर सकता है। राजस्थान की ओर से आने वाली हवा गर्म होती है जो शहरों के तापमान को बढ़ा सकती है। इसके अलावा, तूफानों और चक्रवातों के आने से भी शहरों का तापमान प्रभावित होता है, और यहाँ तक कि बारिश की संभावना भी बढ़ जाती है। इस प्रकार के नए तत्वों को समझकर हम अधिक सटीक मौसम पूर्वानुमान और परिर्वतन के प्रति सजग रह सकते हैं।

डॉ. केलकर द्वारा दिया गया उदाहरण मुख्य रूप से शहरीकरण और उसके पर्यावरणीय प्रभावों को समझाने के लिए महत्वपूर्ण है। लंबी-लंबी इमारतों के निर्माण और शहरों के बढ़ते आबादी के कारण, हवा की धारा में परिवर्तन आ गया है जो शहर के तापमान को प्रभावित करता है। यह उदाहरण भविष्य में किसी भी नए शहरीकृत क्षेत्र के विकास में समझाने के लिए एक सावधान के रूप में सेवित किया जा सकता है।

गर्मियों में मध्य भारत के कुछ शहरों में तापमान के बढ़ने की यह सामान्यता अहम है। ‘कोर हीट ज़ोन’ के रूप में वर्णित इलाके विशेष रूप से तापमान के अधिक होने के लिए उपयुक्त होते हैं। इससे पूर्वानुमानित गर्मियों में आजाद होने वाला तापमान स्थानीय आबादी के लिए अधिक असहनीय बना सकता है। इस प्रकार के मौसम परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा अधिक उत्तेजित होते हैं।

डॉक्टर केलकर द्वारा उठाए गए मुद्दे में अहमता को दिखाते हैं कि हमें अपनी आदतों और व्यवहारों में परिवर्तन की आवश्यकता है। गर्मियों में लू लगने से होने वाली मौतों में भी हमारी जिम्मेदारी होती है, और इसमें हमारे आदतों का भी अहम योगदान हो सकता है। इस चुनौती से निपटने के लिए, हमें सार्वजनिक शिक्षा, जागरूकता, और संज्ञान बढ़ाने के लिए सामुदायिक स्तर पर काम करने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, सरकारी नीतियों और उपायों के माध्यम से भी लू से संबंधित हादसों को कम किया जा सकता है।

डॉक्टर केलकर के उक्तियाँ आधुनिक जीवनशैली के महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देती हैं। उनके अनुसार, हमें मौसम के अनुसार अपने खान-पान और वस्त्रों की चयन में बदलाव करना चाहिए। यह बदलाव हमें आपत्तिजनक स्थितियों से बचाने में मदद कर सकता है। उनके द्वारा उदाहरण के रूप में दिए गए राजस्थान के लोगों का उत्तराधिकारित्व और जागरूकता का उल्लेख भी यह सिद्ध करता है कि हमें मौसमी परिस्थितियों के अनुसार अपने व्यवहार को समायोजित करने की जरूरत है।

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