maharana pratap jayanti
महाराणा प्रताप सिंह जी की जयंती, जिसे महाराणा प्रताप जयंती के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान में एक महत्वपूर्ण त्योहार और सार्वजनिक अवकाश है। यह त्योहार भारतीय शासक, महाराणा प्रताप की जयंती का उत्सव मनाता है। आमतौर पर इसे 9 मई को मनाया जाता है, लेकिन कुछ स्थानों पर यह 22 मई को भी मनाया जाता है।
महाराणा प्रताप के जन्मस्थान के संबंध में दो धारणाएँ हैं।
पहली धारणा के अनुसार, महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था। इसका कारण यह है कि महाराणा उदयसिंह और जयवंताबाई का विवाह कुम्भलगढ़ महल में हुआ था।
दूसरी धारणा के अनुसार, महाराणा प्रताप का जन्म पाली के भिल्ल जनजाति में हुआ। महाराणा प्रताप की माता का नाम जयवंता बाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी।
महाराणा प्रताप का बचपन भील समुदाय के साथ बिता, और भीलों के साथ ही वे युद्ध कला सीखते थे। भील अपने पुत्र को “कीका” कहकर पुकारते थे, और इसलिए भील महाराणा को “कीका” नाम से पुकारते थे।
विजय नाहर की पुस्तक “हिन्दुवा सूर्य महाराणा प्रताप” के अनुसार, जब प्रताप का जन्म हुआ था, उदयसिंह युद्व और असुरक्षा से घिरे हुए थे। कुंभलगढ़ किसी तरह से सुरक्षित नहीं था, और जोधपुर के शक्तिशाली राठौड़ी राजा राजा मालदेव उन दिनों उत्तर भारत में सबसे शक्तिसम्पन्न थे। जयवंता बाई के पिता एवं पाली के शासक सोनगरा अखेराज मालदेव का एक विश्वसनीय सामन्त एवं सेनानायक था।
इस कारण, पाली और मारवाड़ सुरक्षित था और रणबंका राठौड़ों की कमध्वज सेना के सामने अकबर की शक्ति बहुत कम थी। इसलिए, जयवंता बाई को पाली भेजा गया।
विभिन्न स्रोतों के अनुसार, महाराणा प्रताप का जन्म पाली मारवाड़ में हुआ। प्रताप के जन्म का समाचार मिलते ही उदयसिंह की सेना ने प्रयाण प्रारम्भ किया और मावली युद्ध में विजय प्राप्त कर चित्तौड़ के सिंहासन पर अपना अधिकार किया।
भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त अधिकारी देवेंद्र सिंह शक्तावत की पुस्तक “महाराणा प्रताप के प्रमुख सहयोगी” के अनुसार, महाराणा प्रताप का जन्मस्थान महाराव के गढ़ के अवशेष जूनि कचहरी पाली में है। यहां सोनागरों की कुलदेवी नागनाची का मंदिर आज भी सुरक्षित है।
इतिहासकार अर्जुन सिंह शेखावत के अनुसार, महाराणा प्रताप की जन्मकुंडली पुरानी दिनमान पद्धति के अनुसार तैयार की गई है। उनके अनुसार, महाराणा प्रताप का जन्म समय अर्धरात्रि 12:17 से 12:57 के बीच हुआ था। प्रातः 5:51 पलमा पर सूर्योदय और 0:00 पलमा पर स्पष्ट सूर्य की स्थिति का ध्यान रखा गया है, जो जन्मकाली इष्ट की गणना में महत्वपूर्ण है।
डॉ. हुकमसिंह भाटी की पुस्तक “सोनगरा सांचोरा चौहानों का इतिहास” (1987) और इतिहासकार मुहता नैणसी की पुस्तक “ख्यात मारवाड़ रा परगना री विगत” में भी महाराणा प्रताप के जन्म के समय के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। उनके अनुसार, महाराणा प्रताप का जन्म 1597 में जेष्ठ सुदी 3 रविवार को हुआ था। सूर्योदय से 47 घंटे 13 पल पश्चात एक प्रकार के उत्कृष्ट दिव्यमान बालक को जन्म दिया गया था।
राणा प्रताप का जीवन एक संघर्षपूर्ण और उत्कृष्ट योद्धा की तरह रहा। उन्होंने अपने जीवन में कई शादियाँ की और कई पत्नियों से संतानें प्राप्त की। यहाँ उनकी पत्नियों और उनके पुत्रों के नाम दिए गए हैं:
1. महारानी अजबदे पंवार – उनके पुत्र अमरसिंह और भगवानदास थे।
2. अमरबाई राठौर – उनका पुत्र नत्था था।
3. शहमति बाई हाडा – उनके पुत्र पुरा था।
4. अलमदेबाई चौहान – उनके पुत्र जसवंत सिंह थे।
5. रत्नावती बाई परमार – उनके पुत्र माल, गज, और क्लिंगु थे।
6. लखाबाई – उनका पुत्र रायभाना था।
7. जसोबाई चौहान – उनके पुत्र कल्याणदास था।
8. चंपाबाई जंथी – उनके पुत्र कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह थे।
9. सोलनखिनीपुर बाई – उनके पुत्र साशा और गोपाल थे।
10. फूलबाई राठौर – उनके पुत्र चंदा और शिखा थे।
11. खीचर आशाबाई – उनके पुत्र हत्थी और राम सिंह थे।
राणा प्रताप का जीवन उनके प्रतिरोध के साथ भरा रहा, और उनका योगदान भारतीय इतिहास में अद्वितीय है।
अकबर को महाराणा प्रताप की मृत्यु की सूचना सुनते ही दुःख हुआ और वह रहस्यमय तरीके से मौन हो गया। उसके आंसू निकल आए और उसके हृदय में गहरा दुख था। अकबर ने महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक होने के कारण उनकी मृत्यु से अत्यंत दुःख हुआ। उसने महाराणा प्रताप के वीरता और साहस को सराहा और उनके धर्मयुद्ध में दिखाए गए बलिदान को सलाम किया।
महाराणा प्रताप के स्वर्गावसान के समय, अकबर लाहौर में था। वहीं उसे सूचना मिली कि महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई है। उस समय के अकबर की मनोदशा को दरबारी दुरसा आढ़ा ने राजस्थानी छन्द में इस प्रकार व्यक्त किया:
“जीवन की ये खोज में जिन्होंने राज्य की रक्षा की,
स्वर्ग सीधे चले गए, मरने के बाद भी जी रहे हैं।”
इस छन्द में अकबर ने महाराणा प्रताप के वीरता और साहस की सराहना की और उनकी आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की।
महाराणा प्रताप जयंती का इतिहास भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है। लोग महाराणा प्रताप के वीरता और साहस का सम्मान करते हैं। उनकी कहानी शुरू हुई जब मुगल सम्राट अकबर ने महाराणा प्रताप के पिता के राजवंश पर हमला किया। महाराणा प्रताप ने अकबर के साथ कई बार गठबंधन करने की प्रस्तावों को खारिज किया। वे स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए उनकी वीरता की मिसाल बने।
हालांकि, महाराणा प्रताप ने मुग़लों के खिलाफ पूरी तरह से विजय नहीं पाई, लेकिन हल्दीघाटी के युद्ध में वे अपने वीरता और युद्ध कुशलता के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने रणनीति का उपयोग करके अपने विरोधी जनरल को हराने में सफलता प्राप्त की।
महाराणा प्रताप जयंती को मनाने के लिए विभिन्न तरीके होते हैं। इस खास दिन पर व्यापक और विशेष पूजाएँ की जाती हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में इस महोत्सव को धूमधाम से मनाया जाता है। कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और बहसें आयोजित की जाती हैं।
महाराणा प्रताप के जन्मदिन पर, लोग उदयपुर में स्थित उनकी स्मारक प्रतिमा की दर्शन करने जाते हैं। इसके अलावा, राजा की विरासत को समर्पित करने के लिए जीवंत परेड और धार्मिक अनुष्ठान भी आयोजित किए जाते हैं।
यह दिन महाराणा प्रताप के जीवन और उनके योगदान को याद करने का एक अवसर होता है, जिसमें वे उनकी वीरता, साहस और दृढ़ संकल्प को समर्थन और सम्मान प्रदान करते हैं।
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