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बेरोज़गारी के कारण और परिणाम क्या आप जानते हैं

बेरोजगारी के संकेतक और प्रकार

 

बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है, जिसे समग्र आर्थिक कल्याण को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) रोजगार और बेरोजगारी को विशिष्ट गतिविधियों के आधार पर परिभाषित करता है:

बेरोज़गारी

 रोजगार और बेरोजगारी की परिभाषा

1. नियोजित (Employed): वे व्यक्ति जो वर्तमान में आर्थिक गतिविधियों में लगे हुए हैं।
2. बेरोज़गार (Unemployed): वे व्यक्ति जो सक्रिय रूप से कार्य की तलाश में हैं, लेकिन उनके पास वर्तमान में रोजगार नहीं है।
3. कार्य की तलाश न करना या उपलब्ध न होना: वे व्यक्ति जो न तो सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश में हैं और न ही रोजगार के लिए उपलब्ध हैं।

 

नियोजित और बेरोजगार व्यक्तियों का संयोजन श्रम बल (Work Force) कहलाता है, और बेरोजगारी दर की गणना निम्नलिखित सूत्र से की जाती है:

 बेरोजगारी दर की गणना

बेरोजगारी दर = (बेरोज़गार श्रमिकों की संख्या / कुल श्रम बल) × 100 बेरोजगारी के प्रकार

 

1. प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment):
– यह तब होती है जब किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक लोग कार्यरत होते हैं।
– यह स्थिति अक्सर कृषि और असंगठित क्षेत्रों में देखी जाती है।

 

2. संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural Unemployment):
– यह तब होती है जब बाजार में उपलब्ध रोजगार के अवसरों और कार्यबल के कौशल के बीच असंतुलन होता है।
– आवश्यक कौशल की कमी और अपर्याप्त शिक्षा इस प्रकार की बेरोजगारी का मुख्य कारण हैं।

 

3. चक्रीय बेरोजगारी (Cyclical Unemployment):
– यह व्यवसाय-चक्र (Business Cycle) में उतार-चढ़ाव के कारण होती है।
– मंदी के दौरान रोजगार घटते हैं और आर्थिक विकास के दौरान रोजगार बढ़ते हैं।
– यह पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में अधिक प्रचलित है।

 

4. तकनीकी बेरोजगारी (Technological Unemployment):
– यह तब होती है जब तकनीकी प्रगति के कारण रोजगारों में कमी आ जाती है।
– विश्व बैंक ने 2016 में भविष्यवाणी की थी कि स्वचालन से भारत में 69% नौकरियों पर खतरा हो सकता है।

भारत में बेरोजगारी के कारण

भारत में बेरोजगारी के लिए कई संरचनात्मक और चक्रीय कारकों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसके अलावा, कुछ अन्य प्रमुख कारण भी हैं जो इस समस्या को बढ़ावा देते हैं:

 1. जनसंख्या वृद्धि
भारत में श्रम की आपूर्ति, उपलब्ध रोजगार के अवसरों से अधिक है, जिससे बेरोजगारी दर में वृद्धि होती है। हर साल बड़ी संख्या में लोग श्रम बाजार में प्रवेश करते हैं, लेकिन पर्याप्त रोजगार सृजन नहीं हो पाता।

 

 2. कौशल विकास का अभाव
अक्सर कार्यबल के पास वह कौशल नहीं होता जो उद्योगों द्वारा मांगे जाते हैं। इस असंतुलन के परिणामस्वरूप विशेष रूप से युवाओं में उच्च बेरोजगारी दर होती है। रोजगार योग्य कौशल की कमी एक प्रमुख चुनौती है।

 

 3. धीमा औद्योगिक विकास
भारत में औद्योगिक क्षेत्र में सीमित निवेश और विकास के कारण नौकरी के अवसर कम होते हैं, जिससे वर्तमान बेरोजगारी की स्थिति और खराब हो जाती है। विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में पर्याप्त विस्तार नहीं हो पा रहा है।

 

 4. कृषि पर निर्भरता
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का अत्यधिक महत्व है, लेकिन यह क्षेत्र सीमित रोजगार सृजन करता है। अन्य क्षेत्रों में सीमित विविधीकरण भी उच्च बेरोजगारी दर में योगदान करता है।

 

 5. तकनीकी प्रगति
जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी ने शारीरिक श्रम का स्थान ले लिया है, कई नौकरियाँ अप्रचलित हो गई हैं, जिससे श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। स्वचालन और डिजिटल क्रांति ने भी पारंपरिक नौकरियों को प्रभावित किया है।

 

 6. आर्थिक असमानताएँ
भारत के कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त बुनियादी ढांचे, उद्योगों और रोजगार के अवसरों का अभाव है। इन क्षेत्रों में बेरोजगारी दर अधिक होती है। क्षेत्रीय असमानताएँ और विकास की असमान गति भी बेरोजगारी को बढ़ावा देती हैं।

 

7. अपर्याप्त शिक्षा प्रणाली
भारत की शिक्षा प्रणाली अक्सर व्यावहारिक कौशल और नौकरी-उन्मुख प्रशिक्षण प्रदान करने में संघर्ष करती है। इसके परिणामस्वरूप शिक्षा और रोजगार के बीच अंतर उत्पन्न होता है, जिससे बेरोजगारी बढ़ती है।

 

8. असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व
भारत में रोजगार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा असंगठित क्षेत्र में है, जिसमें रोजगार सुरक्षा, सामाजिक-सुरक्षा लाभ और स्थिर आय का अभाव है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को अनिश्चित रोजगार संभावनाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे समग्र बेरोजगारी बढ़ती है।

 

1. शिक्षा और कौशल विकास को बढ़ावा देना: रोजगार योग्य कौशल का विकास महत्वपूर्ण है।
2. औद्योगिक विकास और निवेश को प्रोत्साहन देना: रोजगार सृजन के लिए औद्योगिक क्षेत्र का विस्तार आवश्यक है।
3. कृषि क्षेत्र में सुधार: कृषि में उत्पादकता और विविधीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
4. समान क्षेत्रीय विकास: सभी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
5. असंगठित क्षेत्र का समर्थन: असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए रोजगार सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना।

 

इन उपायों से भारत में बेरोजगारी की समस्या को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है और समग्र आर्थिक कल्याण में सुधार हो सकता है।

 भारत में बेरोजगारी के परिणाम

 

 1. वित्तीय कठिनाइयाँ (Financial Difficulties)
बेरोजगारी के कारण व्यक्तियों को नियमित आय नहीं मिलती, जिससे वे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और एक सभ्य जीवन स्तर बनाए रखने में कठिनाई का सामना करते हैं। इससे आर्थिक असुरक्षा और गरीबी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

 

 2. क्रय शक्ति में कमी (Reduced Purchasing Power)
बेरोजगार व्यक्ति वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करने के लिए सक्षम नहीं होते, जिससे उनकी क्रय शक्ति में कमी आ जाती है। इससे मांग में कमी होती है, जिससे आर्थिक गतिविधियों में मंदी आ सकती है। बेरोज़गारी

 

 3. सामाजिक कलंक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Social Stigma and Psychological Impact)
बेरोजगारी के कारण व्यक्तियों को सामाजिक कलंक और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। इससे आत्मसम्मान में कमी, मनोवैज्ञानिक तनाव और अवसाद जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

 

 4. बढ़ती असमानता (Increased Inequality)
रोजगार के अवसरों की कमी और आय की असमानताएं अमीर और गरीब के बीच की खाई को और बढ़ा देती हैं। इससे समाज में असमानता और असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

 

 5. प्रतिभा पलायन (Brain Drain)
बेरोजगारी के कारण योग्य पेशेवर विदेश में रोजगार के अवसर खोजते हैं, जिससे देश का कुशल कार्यबल विदेश चला जाता है। इससे देश के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न होती है और प्रतिभा की कमी महसूस होती है।

 

 6. सामाजिक अशांति (Social Unrest)
रोजगार की कमी से युवाओं में निराशा बढ़ती है, जिससे वे विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों में शामिल हो सकते हैं। इससे सामाजिक अशांति और अस्थिरता की स्थिति बन सकती है।

 

 7. आर्थिक बोझ (Economic Burden)
बेरोजगारी के कारण सरकार पर सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों, बेरोजगारी लाभ और रोजगार सृजन योजनाओं का आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। इसके अलावा, उत्पादक मानव पूंजी की हानि से आर्थिक वृद्धि और विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

 

बेरोजगारी को कम करने के लिए सरकारी नीतियाँ दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित की जा सकती हैं: बेरोज़गारी

 

 1. आर्थिक विकास को बढ़ावा देना

 

आर्थिक विकास के माध्यम से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। सरकारें आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित नीतियां अपना सकती हैं:

– **सरकारी खर्च में वृद्धि**: बजट में बढ़ोतरी करके सरकार उपयुक्त क्षेत्रों में निवेश कर सकती है।
– **निजी निवेश को बढ़ावा देना**: निजी क्षेत्र को बड़े प्रोजेक्ट्स में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
– **व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना**: व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए नीतियों की कड़ी कार्रवाई की जा सकती है।
– **प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना**: नई तकनीकों और उत्पादों के विकास को सरकार समर्थन प्रदान कर सकती है।

 

 2. बेरोज़गारों के कौशल और रोजगार योग्यता में सुधार करना

 

बेरोजग़ारों के कौशल और रोजगार योग्यता में सुधार करने से उन्हें रोजगार प्राप्त करने सहायता मिल सकती है। सरकारें इसके लिए निम्नलिखित नीतियां अपना सकती हैं:

 

– शैक्षिक और प्रशिक्षण कार्यक्रम: उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने से बेरोजगारों की कौशल सेट में सुधार हो सकता है।
– रोजगार सहायता कार्यक्रम: बेरोजगारों को रोजगार प्राप्त करने के लिए सहायता प्रदान की जा सकती है।
– कौशल विकास कोष: कौशल विकास कोषों के माध्यम से बेरोजगारों को उनकी कौशल सेट में सुधार के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है।

 

 सरकारी योजनाएँ बेरोज़गारी कम करने के लिए बेरोज़गारी

 

– प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना: कौशल विकास कार्यक्रम जिनमें युवाओं को उच्च कौशल सेट में प्रशिक्षित किया जाता है।

सरकार के द्वारा अभियांत्रिकी, आर्थिक विकास,  के साथ मुकाबले के लिए नीतियों को समालोचना की जरूरत है। निजी क्षेत्र भी इस में अहम भूमिका निभा सकता है, उसके साथ ही नागरिक समाज का सहयोग भी आवश्यक है।  बेरोज़गारी

 

 सरकारी नीतियाँ:

1. कौशल विकास योजनाएं: सरकार को कौशल विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोग्राम लाने चाहिए, जिससे लोग नवीनतम और आवश्यक कौशलों को सीख सकें।

2. रोज़गार सहायता: सरकार को बेरोज़गारों को उनके पास सहारा प्रदान करने के लिए वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने चाहिए।

3. स्वरोजगार के अवसर: स्वरोजगार के अवसर प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को उद्यमियों और व्यापारियों को समर्थन प्रदान करना चाहिए।

 निजी क्षेत्र और नागरिक समाज:

1. कंपनियों के सहयोग: निजी क्षेत्र को बेरोज़गारी के खिलाफ लड़ाई में शामिल होना चाहिए, जैसे उन्हें अपने कर्मचारियों के कौशल में निवेश करना।

2. सामुदायिक समर्थन: नागरिक समाज को बेरोज़गारों के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण, और रोज़गार के अवसरों को प्रोत्साहित करने में सहायक होना चाहिए।

 

 निष्कर्ष:

भारतीय सरकार को बेरोज़गार से निपटने के लिए सही दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। कौशल विकास, नई रोज़गार के अवसर, और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र, और समाज सहयोग कर सकते हैं। इस संघर्ष में एकीकृत प्रयास बेरोज़गारी को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।

 निष्कर्ष

 एक जटिल और बहुआयामी समस्या है, जिसका समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसे कम करने के लिए प्रभावी नीतियों और योजनाओं की आवश्यकता होती है, जो कौशल विकास, शिक्षा, और रोजगार सृजन पर केंद्रित हों। विभिन्न प्रकार की बेरोजगारी को समझकर और उनसे निपटने के उपाय खोजकर ही हम एक समृद्ध और स्थिर समाज की ओर बढ़ सकते हैं।

 

बेरोज़गारी

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